उसकी इस ख़ता की भी कोई सज़ा नहीं
मिलने का किया वादा पर वो मिला नहीं
वो हसीं बात आज उसने ही बोल दी यारो
जो मेरे दिल मे थी मैंने मगर कहा नहीं
हाल-ए-दिल खत में तुझे तो मैंने रोज़ लिखा
क़ासिद को खत दिया पर तेरा पता लिखा नहीं
मेरी खता है जो छूना तुझे चाहूँ मैं मगर
इतना हसीं है तू, क्या तेरी कोई खता नहीं ?
मुझपे पहला पत्थर किसी अपने ने उछाला था
और तो गैर थे मुझे उनसे कोई गिला नहीं
इन अमीरों के आगे हाथ क्यूँ फैलाये "विक्रम"
ये भी तो इंसान हैं साहब, कोई खुदा नहीं