तुझे भूलना मुमकिन भी हो जाता लेकिन
तेरी याद दिलाने का जहां में दस्तूर बहुत है
न की कद्र तेरी जब थी जानाँ पास तू मेरे
आज जब कद्र करता हूँ तो तू दूर बहुत है
हमारा इश्क ग़र परवान चढ़ता तो क्यूँ कर
मैं मगरूर बहुत हूँ और तू मजबूर बहुत है
सैकड़ो ज़ख्म सह कर भी जी लेता है इंसान
मगर जाँ लेने को दिल पे इक नासूर बहुत है
ठुकरा दिया "विक्रम" जिसे वो फिर न मिलेगा
जहां में किस्सा ये चाहत का मशहूर बहुत है
बहुत खूब लिखा है आपने आपकी यह पोस्ट पढ़कर एक पुराना गीत याद आया ज़िंदगी के सफर मेन गुज़र जाते है जो मक़ाम वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते.....
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का मकता बहुत अच्छा लगा वैसे सब शेर अच्छे हैं मुबारक हो .....
जवाब देंहटाएंNice one vikram....:-)
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka dili shukriya.......:)
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