सोमवार, 27 जून 2011

मैं क्या हूँ??


क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
झूठ होगा जो कहूँ प्यार का दरिया हूँ
इंसानियत का हुनर अभी आया नहीं मुझमे 
और हैवानियत से भी अभी थोड़ा जुदा हूँ 


क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
मैं हर दिन कुछ और बनके जिया हूँ 
खुद की पहचान खो दी है मैंने 
अपनी बहुत सी शाख्शियतो का आशियाँ हूँ 


क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ
अपने टूटे ख़्वाबों का बाकी निशाँ हूँ 
यूँ ही कुछ शेर लिख दिए हैं मैंने 
उन्ही शेरों को हर पल में जी रहा हूँ  
....
अब क्या कहूँ तुमसे कि मैं क्या हूँ????

सोमवार, 13 जून 2011

कुछ यूँ हो, कि गुफ्तगू हो


चलो कि फिर आज कुछ यूँ हो
हम हों तुम हो और थोड़ा जुनूँ हो |
ज़िन्दगी और मौत एक दूजे से भागी है बहुत 
कुछ यूँ करो की दोनों एक दूजे से रू-ब-रु हों  |

ज़िन्दगी के सफ़र में, मैं बातें करना भूल गया
आओ बैठो साथ ज़रा, कुछ देर गुफ्तगू हो |
  
मैंने शिकवे शिकायत तुम्हारे कभी सुने ही नहीं
पर छोडो उनकी बात भी, आज क्यूँ हो |

तेरे पहलू में गुज़र जाये ये रात-ए-खिज़ा 
पर तेरा दामन है तो सुबह-ए-फिजा भी क्यूँ हो |

सुकून-ओ-दर्द की ज़िन्दगी से हूँ उकता सा गया 
चलो कहीं ऐसी जगह  के जहाँ न दर्द न सुकूँ हो |

चलो की फिर आज कुछ यूँ हो
हम हों तुम हो और थोड़ा जुनूँ हो |

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