मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

उम्मीद

हर रोज़ सवेरे उठता हूँ,
खिड़की से बाहर तकता हूँ,
सोचता हूँ -
पौधों में कली लगी होगी,
अपनी बगिया भी सजी होगी,
हर तरफ फिजा छाई होगी |
और शायद तू आई होगी |
पर ये हवा बहार नहीं लाती है,
हर रोज़, तू नहीं आती है |

हर शाम मैं छत पर चढ़ता हूँ,
और लाख उम्मीदें गढ़ता हूँ |
सोचता हूँ -
ये आकाश आज गुलाबी होगा,
मौसम भी आज शराबी होगा |
हर ओर मदहोशी छाई होगी,
और शायद तू आई होगी |
पर उम्मीदें धोखा खाती हैं |
हर शाम तू नहीं आती है |

कल रात पवन कुछ यूँ मंद चली,
चहक उठी मेरी सूनी सी गली |
मौसम भी शराबी होने लगा,
ओर बीज फिजा के बोने लगा |
मेरे संग एक परछाई थी,
कल सपने में तू आई थी |

कल सपने में तू आई थी |

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

इतने समय तक अनुपस्थित रहने के लिए, आप सभी से क्षमा चाहता हूँ | दरअसल एक मित्र (?) ने हमारा अकाउंट हैक कर लिया था| किसी प्रकार पुनः प्राप्त कर पाया हूँ सो फिर उपस्थित हूँ | यदि इन दिनों किसी ब्लॉगर मित्र को मेरे नाम से कोई अभद्र टिप्पणी या मेल प्राप्त हुआ हो तो क्षमा चाहूँगा |
जल्द ही अगली रचना पोस्ट करूँगा | आशा है आपका प्यार मिलेगा |
धन्यवाद |

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

मैं जिंदा हूँ ?



आज ज़िन्दा हूँ मैं फिर एक जमाने के बाद,

आये फिर याद मुझे वो, भूल जाने के बाद |
देके पल दो पल की ख़ुशी फिर वो लौट जायेंगे,
जो आज आये हैं सारी उम्र सताने के बाद |
आज ज़िन्दा हूँ......

करवटों में कटी रात, आँखों में थी नींद कहाँ
शमा बुझाई भी तो, सारी रात जलाने के बाद |
रात के संग हम भी जले इस क़दर,
राख़ भी ना मिली, हमको बुझाने के बाद |
आज ज़िन्दा हूँ........

रूठने का हुनर हमको भी आता है मगर,
खुद तड़पते हैं हम रूठ जाने के बाद |
उनके तेवर भी बदलते हैं मौसम की तरह,
खुद ही रूठ जायेंगे, वो हमको मनाने के बाद |
आज ज़िन्दा हूँ........

तन्हाई के दोज़ख में फिर वो मुझे छोड़ गए,
जन्नत-ए-इश्क के ख़्वाब दिखाने के बाद |
फिर ना आई मौत मुझे मर कर के भी,
आज जिंदा हूँ मै फिर मर जाने के बाद |

आज जिंदा हूँ मै फिर मर जाने के बाद |

(यह पोस्ट गलती से मिट गयी थी अतः पुनः पोस्ट कर रहा हूँ |)

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